Solitude: You Are My True Companion
Overview
I am the kind of person who likes being alone but certainly not for long - loneliness haunts me as well. I like to be surrounded by lovely people as much as I like solitude.
Oh, my dear solitude you are my true companion. There is no one in this entire universe who understands me better than you - only you allow me to meet myself.
Yes, I am not good at keeping secrets or creating suspense - my poetry is all about solitude - My Happy Place. I am the kind of person who likes being alone but certainly not for long - loneliness haunts me as well. I like to be surrounded by lovely people as much as I like solitude. I read somewhere solitude is good if you have it as an appetizer but not for the main course. Needless to say that solitude is an important part of your healthy life and well-being. Self-talk, taking a break from a hectic routine, or just sitting alone can do wonders. Agree! well, not sure about you but that definitely works for me. It’s like recharging yourself to connect with the outside world in a better way.
Here I am attempting to pen down my thoughts about my solitude and what kind of bond we share with each other. How I feel about this fleeting encounter of me and my solitude. Inspired by the lines of famous Hindi song - मैं और मेरी तनहाई अक्सर ये बातें करते हैं…
तुम मैं और सिर्फ़ तुम
तुमसे मेरा अजीब सा रिश्ता है,
कभी तुम्हारे पास रहना चाहती हूँ तो कभी दूर,
तुमसे जिस दिन मुलाक़ात ना हो,
वो दिन कुछ अधूरा सा लगता है।
तुम्हारे आगोश में बैठकर घंटों बातें करना अच्छा लगता है,
बातें खुद से होती हैं पर तुम्हारा वहाँ रहना ज़रूरी होता है,
भीड़ में तो होती हूँ पर आँखें तुम्हें ही तलाशतीं हैं,
शायद तुम भी ऐसे ही कहीं मेरी राह देखती हो।
इंतेज़ार मुझे उस पल का अक्सर रहता है,
जिसमें तुम मैं और सिर्फ़ तुम होंगे,
कुछ शिकायतें होंगी कुछ पुरानी यादों की पोटली खुलेगी,
कुछ सवाल होंगे और उनके जवाब खोजने की पूरी कोशिश होगी।
तुम एक टक मुझे ये सब करते हुए देखोगी,
कभी मेरी नादानियों पर मुस्कुराओगी और कभी मेरी पीठ थपथपाओगी,
लेकिन ये सब तब हो पाएगा जब मैं और तुम मिल पाएँगे,
तुम हो तो मेरी ही ‘तनहाई’ - मैं और तुम दूर कब तक रह पाएँगे।
तुम हो शोर शराबे और दिखावे से अछूती,
एक साफ़ आइने की तेरह मेरी असली सूरत को दिखाती,
तुम कभी कमरे की खिड़की पर मेरे साथ बैठ जाती हो,
तो कभी लम्बे सफ़र में मेरी साथी बन जाती हो।
माना अभी भीड़ का हिस्सा हूँ, पर तुम्हारे पास जल्दी ही आऊँगी,
मन में बेचैनी और कुछ उलझे हुए से ख़याल हैं,
जानती हूँ तुम ना देख सकती हो ना सुन सकती हो,
पर मेरे लिए तुम सुकून हो, इस भागते मन का ठहराव हो।
लोग कहते हैं तुम्हारा साथ ज़्यादा ठीक नहीं,
कभी कभी की मुलाक़ात तो अच्छी है पर हर पल तुम्हारी दस्तक ठीक नहीं,
मैं भी तुम्हें मौसम की पहली बारिश की तरह बुलाती हूँ,
तुम भी मिट्टी की भीनी ख़ुशबू की तरह आती हो।
कभी हाथ में चाय की प्याली लिए तुम्हारे साथ बैठती हूँ,
कभी मेरी कलम तुम्हारे साथ मिलकर एक नयी कविता लिखती है,
तुम आती हो सुकून के साथ तब मेरे विचारों को एक दिशा मिल जाती हैं,
साथ तुम्हारा होता है तो मैं खुद से चंद बातें कर पाती हूँ।
खुद से मिलने के लिए तुम्हारे पास जाना ज़रूरी है,
पर तुम्हें अपनी आदत बनाना नहीं चाहती,
मेरी ज़िंदगी में तुम्हारी अहमियत भी है और ज़रूरत भी,
पर मैं बेवजह तुम्हें बुलाना नहीं चाहती।
हाँ मेरा और तुम्हारा रिश्ता अजीब है,
क्योंकि तुम वो हो जो मेरी कल्पनाओं के आकाश को नापती नहीं,
तुम वो हो जो मेरे मन की आवाज़ को दबाती नहीं,
तुम वो हो जो मुझे मुझसे मिलाये बिना जाती नहीं।
Do you agree with me and love to spend time in your own company every now and then? Share your thoughts in the comment section.
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